३१७ ॥ श्री वनी जान जी ॥
पद:-
हम तो हर दम निरखती रहती हैं सीता राम को।
धुनि ध्यान लय परकाश क्या अनहद सुनो वसुयाम को।
सुर मुनि के दर्शन होत नित बरनै सुयश हरि नाम को।
सतगुरु करौ पावो पता छोड़ो जगत के काम को।
जीतै में कर लीजै सुफ़ल यह तन मिला जो वाम को।
तन तजि सिंहासन चढ़ि चलो कहती वनी निज धाम को।६।