३१८ ॥ श्री तनी जान जी ॥
पद:-
देखौ मोहन मुरारी की चितवन।
चहुँ दिशि घूमि हँसत झुकि नाचत पग पग पर करि मटकन।
मुरली अधर धरत फिरि कूकत मोहत सब के तन मन।
सखा सखी सब सँग में नाचत जय जय कार करत सुर मुनि जन।
जब राधे कर से कर पकड़ै तब हरि गुद गुदाय दें प्रिय तन।
तनी कहैं सतगुरु करि निरखौ जियतै में बिगड़ी जावै बनि।६।