३२६ ॥ श्री अरविन्द जी ॥
पद:-
बाँकुड़े वीर सो साधू जो मन इन्द्रिन सुधारे हैं।
फ़ौज असुरन की थी तन में उसे एक दम निकारे हैं।
नूर लय ध्यान धुनि जाना रूप सन्मुख निहारे हैं।
विमल अनहद सुनै हर दम देव मुनि संग खेलारे हैं।
जगी नागिन सुधे चक्कर कमल भी सब फुलारे हैं।५।
रहैं निर्बैर औ निर्भय सदा सतगुरु के प्यारे हैं।
मगन ह्वै कर भनै हरि यश शब्द मधुरे सुखारे हैं।
कहैं अरविन्द तन तज कर अचल पुर को सिधारे हैं।८।