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३२७ ॥ श्री नवल विहारी जी ॥


पद:-

सतगुरु से सुमिरन विधि जांचो।

तन मन प्रेम से हरि रंग रांचो।

असुरन की सब फौज फते हो मिटै भाल विधि खाँचो।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय मिलै रूप तब साँचो।

अनहद सुनौ देव मुनि के संग करौ कीरतन नाचो।५।

चारौं तन सोधन ह्वै जावैं तत्वै दर्शै पांचौं।

नागिनी चक्र कमल सब जानो ग्रन्थ मुनिन के बाँचो।

हर दम छाया हरि की ऊपर नेक न लागै आंचो।

जो न भजो तो आओ जाओ मिलै न कौड़ी काँचो।

या से चेत करौ नर नारी दीन बनौ औ मांचो।१०।

नवल विहारी कहैं सुरति को शब्द पै धरि कै टाँचो।

जियतै सब करतल ह्वै जावै करौ सुफल नर ढाँचो।१२।