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३३३ ॥ श्री पं. करम चन्द जी ॥


पद:-

जब मन रंगा हरि नाम रंग तब फिर विलग जाता नहीं।

सतगुरु बिना यह मार्ग अपनै आप कोइ पाता नहीं।

धुनि ध्यान लय परकाश बिन भव पार कोइ पाता नहीं।

इनके बिना प्रभु हर समय छवि सामने छाता नहीं।

रूप के यह अंग हैं मैं झूठ बतलाता नहीं।५।

दीनता औ शान्ति गहि क्यों इस तरफ़ आता नहीं।

पढ़ सुन किया कंठस्थ तू पर प्रेम में माता नहीं।

तन मन कि करिके एकता सुर मुनि से बतलाता नहीं।

नागिन जगा चक्कर चला कर कमल उलटाता नहीं।

अनहद को सुन पीकर अमी विधि गति को छेकवाता नहीं।१०।

नर तन मिला अनमोल है हरि चरित नित गाता नहीं।

करि ले कमाई जियत में तब जग से कोइ नाता नहीं।१२।