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३३४ ॥ श्री ठाकुर प्रताप सिंह जी ॥


पद:-

ज्वार भाटा यह मन की बड़ी भारी।

इसने जीवों कि कीन्ही गिरा ख्वारी।

पड़े चक्कर में रोते हैं नर नारी।

अमी पासै वे जाने पियत खारी।

बिना सतगुरु के भव ते न हो पारी।५।

यह रीती सनातन ते है जारी।

दल दैत्यन का तन में है बल धारी।

नाम तेगा बिना को सकै मारी।८।