३३६ ॥ श्री गयन नाथ जी ॥
पद:-
कीजै राम नाम की चोरी।
न कर चलै न जिह्वा डोलै सूरति शब्द में जोरी।
ररंकार धुनि खुलै अखण्डित जो भव बन्धन तोरी।
अनहद सुनो देव मुनि आवैं मिलैं दोउ कर जोरी।
ध्यान प्रकास समाधी होवै आनन्द हिये हिलोरी।५।
झांकी युगुल सामने हरदम राम श्याम सिय गोरी।
सतगरु करौ मिलै तब मारग तन मन हो एक ठोरी।
गयन नाथ कहैं प्रेमी सो जो नाम के रंग जाय बोरी।८।