३३५ ॥ श्री उत्तम सिंह जी शिष्य॥
पद:-
झूठी चतुरता कहैं सांच।
हर समय चोरन की संगति में रहे हैं नाच।
पढ़ि औ सुनि कछु गुनि न पायो बसत पासै पांच।
मती मन की अती करि शिर धरयौ पाप क खांच।
श्रवन बहिरे नयन अन्धे क्या सुनैं क्या बाँच।५।
अन्त की बेरिया बली यम आय लेवैं टांच।
मारते यमपुर चलैं लै निकसि लटकै कांच।
बड़ी भागि से मिलत है यह सुनो मानुष ढांच।
करो सतगुरु भजो हरि को मिटै भव की आंच।
ध्यान धुनि परकाश लय हो रूप सन्मुख सांच।१०।
सुनो अनहद पिओ अमृत जाव हरि रंग रांच।
देव मुनि संग होय बैठक करैं पक्की जांच।१२।