३५० ॥ श्री सद्धू तेली जी ॥
पद:-
सतगुरु किया मारग मिला घनश्याम छवि छाने लगे।
नैनो का करि इशारा लखि मुझको मुसुकाने लगे।
बंशी अजब सुरीली भरि राग क्या गाने लगे।
परकाश - ध्यान - समाधि धुनि रग रोम भन्नाने लगे।
सुर मुनि मिलन के हेतु करिके प्रेम नित आने लगे।५।
हर समै अनहद बजै घट अमी पी पाने लगे।
नागिनि जगी चक्कर सुधे खिलि कमल दिखलाने लगे।
अजपा यह सूरति शब्द का अब हम भि बतलाने लगे॥८।