३५६ ॥ श्री राजेश्वरी माई जी ॥
पद:-
मन में भरी जग कामना हैं, पास मिलते राम ना।
सतगुरु बिना कोइ थाम ना, होता सुफल नर चाम ना।
परकाश-लय-धुनि ध्यान ना, प्रभु सामने छवि भान ना।
अनहद कि जब तक सान ना, तब तक अमी को पान ना।
सुर मुनि क सुनता गान ना, तन मन को प्रेम में सान ना।५।
नागिनि जगा गति जान ना, सब लोक लखि पहचान ना।
षट चक्र जब घुमरान ना, सातों कमल उलटान ना।
जब तक कि आँखी कान ना, तब तक कि मिलता थान ना।८।