साईट में खोजें

३६० ॥ श्री खड़ेश्वरी माई जी ॥


पद:-

गुल्ला गुलेल खेलैं चारिउ लाला।

राम भरथ औ लखन शत्रुहन संग सखा बहु आला।

गुरु वशिष्ठ सब रानी दशरथ लखि लखि होत निहाला।

दुइ खम्भे मलया गिरि चन्दन के गाड़े करि साला।

ता में तार डबल चाँदी का हेम क पच्छी डाला।५।

स्वर्णकार हुसियारी से क्या पांच रंग भरि ढाला।

ता के भीतर मोती छोड़े बाजै नेकौ हाला।

ता पर करत निशाना सब मिलि कहँ तक कहौं हवाला।

सुर मुनि नभ ते जय जय बोलैं छोड़ै फूलन माला।

साज बजावैं नाचैं गावैं देंय दोऊ कर ताला।१०।

भाग्य सराहैं पुर बासिन की मातु-पिता जिन पाला।

सतगुरु करौ लखौ नित लीला होय सुफल नर छाला।१२।