३६१ ॥ श्री शिव पाल सिंह जी ॥
पद:-
मन छिनरा मति भई छिनाल। नर नारी सब चलत कुचाल॥
वृद्ध तरुण का कौन हवाल। माते पांच सात सिन बाल॥
माया फेंकि दीन यह जाल। नाचैं जीव देंय करताल॥
धर्म्म भागि कै छिप्यो पताल। धन्य धन्य श्री युग कलि काल॥
अन्त समय पर आयो काल। पकरि उठाय लीन धरि गाल।१०।
सतगुरु करि मेटौ दुख टाल। भजौ सदा सिय राम कृपाल॥
लय प्रकाश धुनि-ध्यान विशाल। सन्मुख जोड़ी निरखौ आल॥
तन मन प्रेम से हो मतवाल। होय न कबहूँ बांको बाल॥
चलौ बुज़ुर्गन की जब चाल। तब तो हो खुब मालोमाल॥
जाव अचल पुर ठोंकि कै ताल। मेटौ जियतै लिखा जो भाल।२०।
सुर मुनि तब तो होहिं दयाल। दर्शन देहिं पिन्हावैं माल॥
सूरति शब्द पै धरि करु ख्याल। घट में अनहद की सुनु ताल॥
नागिनि जगै चक्र षट साल। कमल उलटि खिलि होंहि बहाल॥
राजयोग यह कह शिवपाल। जानि लेय सो करै कमाल।२६।