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३७२ ॥ श्री अल्ला जान जी ॥


पद:-

राम नाम का कल्प जान लो सतगुरु करि नर नारी जी।

ध्यान प्रकास समाधी होवै सुधि बुधि जहां बिसारी जी।

खुलै धुनी हो रं रं रं रं एक तार रहै जारी जी।

हड्डी हड्डी रग रग बोलै रोम रोम भनकारी जी।

हर शै से तब सुनो कहौ क्या तन मन होय सुखारी जी।५।

अमृत पियो सुनो घट अनहद बाजै न्यारी न्यारी जी।

सुर मुनि मिलैं लिपटि उर लावैं बोलैं हंसि बलिहारी जी।

करैं कीर्तन प्रेम मगन ह्वै नाचि कूद दै तारी जी।

गदगद कंठ टक टकी लागै पलक सकौ नहिं मारी जी।

जियतै मुक्ति भक्ति मिलि जावै विधि गति लात से टारी जी।१०।

पुलकावली नैन जल छूटै चलै मनहु पिचकारी जी।

फूलैं कमल चलैं सब चक्कर नागिन जागै प्यारी जी।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सब के पितु महतारी जी।

सन्मुख रहें न अन्तर होवैं सूरति लेहु सँभारी जी।

शेष गणेश पवन सुत लोमश जपैं जिन्हें त्रिपुरारी जी।

अल्ला जान कहैं तन तजि कै बैठौ भवन मँझारी जी।१६।