३७९ ॥ श्री शान्ति सिंह जी ॥
दोहा:-
जनमेजय आसतीक का तीन वेर ले नाम।
ताली देय बजाय फिर एक वार निज धाम।१।
सर्प निकर ग्रह ते चलैं रहैं न फिर वहि ठौर।
कहैं शान्ति सिंह मम वचन मानि लेव करि गौर।२।
दोहा:-
जनमेजय आसतीक का तीन वेर ले नाम।
ताली देय बजाय फिर एक वार निज धाम।१।
सर्प निकर ग्रह ते चलैं रहैं न फिर वहि ठौर।
कहैं शान्ति सिंह मम वचन मानि लेव करि गौर।२।