३९८ ॥ श्री बरछी बाज नट जी ॥
पद:-
अजपा जाप सत्य रंकार।
सतगुरु करि सुमिरन विधि जानो मिलि जावै सुखसार।
ध्यान धुनी प्रकाश दसा लय अनहद की गुमकार।
अमृत पियौ गगन ते टपकै करैं देव मुनि प्यार।
राम सिया प्रिय श्याम सामने साजैं सुभग श्रंगार।
अंत त्यागि तन श्याम रूप बनि बठौ भवन मंझार।६।