४०४ ॥ श्री कम्मल शाह जी ॥
पद:-
पढ़े सुने का ज्ञान है भौंक। साधन बिना सकल नहिं लौंक।
लै यम नर्क में देवैं छौंक। भूलि जाय सब झूठी शौक।
सतगुरु करि अब जावो चौंक। जियतै छूटै भव की चौंक।
बात कहैं हम सब के गौंक। या में मानो पड़े न रौंक।
तन मन प्रेम में दीजै घौंक। उघरै ढक्कन नाम की खौंक।१०।
टूटि जाय तब द्वैत की वोंक। नर तन धन्य मिला क्या मौक।
ध्यान समाधि में जावो पौक। सन्मुख श्याम मिली क्या धौक।१४।