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४०५ ॥ श्री पंडित मुक्त नाथ जी ॥


पद:-

प्रेम भक्ती बिना प्रेम भक्ती बिना प्रेम भक्ती बिना गति होती नहीं।

सतगुरु करिये सतगुरु करिये सतगुरु करिये मानो वैन सही।

धुनि ध्यान खुलै धुनि ध्यान खुलै परकाश दसा लय जाय लही।

मुनि देव मिलैं मुनि देव मिलैं घट अनहद सुनिये बाजि रही।

सन्मुख हर दम सन्मुख हर दम प्रिय श्याम छटा छवि छाय रही।५।

जियतै जानो जियतै जानो सो भव न परै सुर वेद कही।

शान्ति दीन बनै शान्ति दीन बनै घट ही में धरी खुल जाय वही।

नहि द्वैत रहै नहि द्वैत रहै तन शोधन हो फिर कौन गही।

जेहि दिशि ताकै जेहि दिशि ताकै जेहि दिशि ताकै सर्वत्र वही।

जप छूटि गयो जप छूटि गयो जप छूटि गयो नहिं माल चही।१०।