४२० ॥ श्री नरसी जी ॥
पद:-
सतगुरु शम्भु मोहिं श्याम को मिलाय दीन्हों
कार्य्य सब सिद्ध भयो प्रेम उमड़ायो है।
नाम धुनि एकतार ध्यान होत उजियार
सून्य में समाय सब सुधि बिसरायो है।
अनहद नाद सुना सुर मुनि दर्शन दीन
गगन ते अमी रस पाय हर्षायो है।
कीरतन रोज कीह्यों दुख मानि सुख लीह्यों
श्याम छटा छवि आप सन्मुख छायो है।
सूरति से सब काम होत यह बात आम
नरसी कहत समय ऐसे मैं बितायो है।
अन्त तन त्यागि चढ़ि यान में पहुँचि गयो राम धाम
बैठने को ठीक ठौर पायो है।६।
दोहा:-
जग मर्य्यादा के लिये श्यामदास गुरु कीन।
शंकर जी आज्ञा दियो सो शिर पर धर लीन।१।
नरसी कह नर नारि सब हरि सुमिरो वसुयाम।
अन्त त्यागि तन अचल पुर बैठ करो विश्राम।२।