४२७ ॥ श्री कम खर्च शाह जी ॥ (२)
पद:-
ध्यान क दिया ज्ञान घृत ता में सूरति बाती शब्द जलावै।
सतगुरु से जो भेद जानि ले सो जियतै करतल करि पावै।
नाम की धुनि लय नूर देव मुनि अनहद बाजा सुनि हर्षावै।
राम सिया की झांकी अदभुत सन्मुख आय छटा छवि छावै।
अजब श्रृंगार बनै नहिं वर्णत अगणित शारद शेष लजावैं।५।
अमित जन्म के सुकृत होंय जब तब प्राणी यहि मार्ग पै आवै।
निर्भय औ निर्वैर जाय ह्वै हरि यश कहै अमी बरसावै॥
ता के वचन जवन गहि लेवै सो मानो भव से विलगावै।
कहैं कम खर्च शाह गुनि लीजै सब के हित हम राह बतावैं।९।
शेर:-
पढ़ि सुनि के चिहचिहा रहे हो क्यों परिन्दों की तरह।
दीनता वो शान्ति बिन तुम हो दरिन्दों की तरह।१।
कम खर्च कह सतगुरु से जप विधि जान कर हरि नाम लो।
तन छोरि बैठि विमान पर चल अचल पुर विश्राम लो।२।