४२७ ॥ श्री कम खर्च शाह जी ॥
पद:-
पाठ जप यज्ञ पूजन से अजनमा भी प्रगट होता।
करै सतगुरु सुफ़ल तन हो जीव तू मोह में सोता।
समय अनमोल पाकर के इसे बेकार क्यों खोता।
खेत अपना बना करके बीज उसमें नहीं बोता।
देव दुर्लभ यह नर तन है जिसे तू समझता पोता।५।
पदारथ चार इस से ले लगा कर देख तो गोता।
ध्यान धुनि नूर लय होवै भगै असुरन के दल रोता।
सुनै अनहद मिलैं सुर मुनि द्वैत का जाय उड़ि तोता।
सुरति को शब्द पै धरिकै कहै कम खर्च जो नोता।
लखै सिया राम को हर दम त्यागि तन फिर न दुख ढोता।१०।