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४५० ॥ श्री लाला दीना नाथ जी ॥


पद:-

सीता राधे कमला गिरिजा शारद काली दुर्गा माय।

हरदम सन्मुख मेरे राजैं शोभा बरनत बनै न भाय।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानै सो यह आनंद पाय।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन खुलि जाय।

सुर मुनि शक्ती दर्शन देवैं अनहद विमल सुनाय।५।

श्री ज्वाला जी नित्य खिलावैं खीर सुगन्धित लाय।

तन के चोर भागि सब जावैं फेरि न परैं दिखाय।

दीनानाथ कहैं मम बानी गुनै सो दुःख नसाय।८।