४५३ ॥ श्री अगिया वैताल जी ॥
दोहा:-
मंत्र यंत्र वो तंत्र सब हरि सुमिरन बिन सून।
जैसे अग्नी के परे दे दुर्गंधी ऊन।१।
अगिया कह जग में वृथा मानुष तन ह्वै जात।
सतगुरु करि को भजौ काहे धोखा खात।२।
दोहा:-
मंत्र यंत्र वो तंत्र सब हरि सुमिरन बिन सून।
जैसे अग्नी के परे दे दुर्गंधी ऊन।१।
अगिया कह जग में वृथा मानुष तन ह्वै जात।
सतगुरु करि को भजौ काहे धोखा खात।२।