४५४ ॥ श्री कोइलिया वैताल जी ॥
दोहा:-
सब विद्या बेकार है हर सुमिरन है सार।
या से सतगुरु करि भजो छूटि जाय जग जार।१।
कहै कोइलिया स्वप्न सम तन धन ग्रह परिवार।
चेति जाय सो पार है नाहीं तो दुख भार।२।
दोहा:-
सब विद्या बेकार है हर सुमिरन है सार।
या से सतगुरु करि भजो छूटि जाय जग जार।१।
कहै कोइलिया स्वप्न सम तन धन ग्रह परिवार।
चेति जाय सो पार है नाहीं तो दुख भार।२।