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४६० ॥ श्री मनहूस शाह जी ॥


पद:-

लीजै राम नाम की कैंची।

सतगुरु से कतरन विधि सीखौ असुर लेव सब ऐंची।

ध्यान धुनि परकाश दसा लय जानि धरौ भव खैंची।

सन्मुख मुरली अधर धरे क्या झांकी हो तिरवैंची।

अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं कर्म जांय दोउ पैंची।

कहे मनहूस अन्त हरि पुर हो झूलै गर्भ न खैंची।६।