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४७१ ॥ श्री तफ़क्कुल रसूल जी ॥


पद:-

किया मुरशिद कि खिदमत हम ठेकाना ठीक है पाया।

खुली धुनि ध्यान भा रोशन सून्य में सुधि को बिसराया।

सुना अनहद मधुर घट में देव मुनि सब से बतलाया।

नहाये तीर्थ हैं जितने लोक सब घूमि फिर आया।

श्री सियाराम राधेश्याम सन्मुख आय छवि छाया।५।

गये मुरशिद अचलपुर जब सदा श्री हरि के गुनि गाया।

रहा निर्वैर औ निर्भय सभी जीवों ने की दाया।

गिजा तन को दिया थोड़ी कभी भर पेट नहिं खाया।

किया ब्रह्मचर्य्य को धारन घटा बल कुछ न अलसाया।

गुजर भर को बसन राखे मिले ज्यादा तो बरताया।१०।

प्रेम से आ दिया जिसने किया उसका ही मन भाया।

किया आराम वसुधा पर पलंग तख्ता न बनवाया।

शयन पांचै घड़ी निशि में किया फिर शौच को धाया।

नित्य क्रिया से छुट्टी पा जपा निज मंत्र मन लाया।

रहा जब तक तन जगत में तन दिवस निशि ऐसे निपटाया।

गया तन छोड़ि मुरशिद ढिग प्रभू कर गहि के बैठाया।१६।