साईट में खोजें

४७० ॥ श्री तरद्दुद रसूल जी ॥


पद:-

सतगुरु बिन भव दुख झेलैं। गहि शब्द ना घट में पेलैं।१।

जे तन मन प्रेम से रेलैं। ते विधि गति लात ते हेलैं।२।

प्रिय श्याम सामने खेलैं। हंसि हंसि कर मुख में मेलैं।३।

तव वयस वृथा हा बेलैं। तजि अमृत खाक सकेलैं।४।