४७६ ॥ श्री शारदा देवी जी ॥
चौपाई:-
माता भाव पती मोहिं माना। हमहुं पुत्र भाव उर ठाना॥
तन मन प्रेम से सेवा कीन्हा। काली माता आशिष दीन्हा॥
विषय वासना कबहूँ न जागी। अजा चोर तन से गये भागी॥
परमहंस जप भेद बतावा। सुर मुनि सब के दर्शन पावा॥
धुनि खुल गई नाम की प्यारी। ध्यान समाधि मिली उजियाली।५।
राधा माधो सन्मुख छाये। को वरनै छवि शेष लजाये॥
तन तजि निजपुर कीन्ह पयाना। कहैं शारदा सत्य बखाना।७।