४८३ ॥ श्री ठाकुर गंगा सिंह जी जनवार ॥
पद:-
जे जन बसैं सुरसरि तीर।
जाप विधि सतगुरु से जानै हटै असुरन भीर।
ध्यान धुनि परकाश लय हो कटै भव की पीर।
राम सीता शम्भु गिरजा संग हनुमत वीर।
हर समय सन्मुख में राजैं दिव्य अजब शरीर।५।
देव मुनि निज निज बसन ते करहिं सुभग समीर।
सुनै अनहद ताल घट में रहै तन मन धीर।
अन्त तन तजि जाय निजपुर आस जग की चीर।८।