४८४ ॥ श्री ठाकुर यमुना सिंह जी परिहार ॥
पद:-
जगत सुख है सब स्वप्न समान।
मातु पिता भ्राता सुत बनिता धन पट और मकान।
अन्त समय कोई काम न दै हैं जब यम पकड़ैं कान।
झूंठ प्रपंच संग दुष्टन को बाजत चतुर सुजान।
कल्पन नर्क में चलि ते सड़िहैं चलै न शेखी शान।५।
राम भजन बिन छिन सुख नाहीं मिलै न ठीक ठिकान।
या से चेत करो नर नारी जो चाहो कल्यान।
सतगुरु करो चलौ निज घर को जानि नाम की तनि।८।