४८६ ॥ श्री ठाकुर गनेशसिंह रघुवन्शी॥
पद:-
तन मन भरा हरिनाम रंग कोई चाह नहीं है।
मरने वो जीने की ज़रा परवाह नहीं है।
दुनियां की सारी बातों में कुछ स्वाद नहीं है।
सतगुरु बिना निज घर की मिलती राह नहीं है।
भक्तों में हरि का प्रेम कोई थाह नहीं है।५।
हर दम भगत मगन रहैं कोई दाह नहीं है।
हरि के भजन बिना करत कोई वाह नहीं है।
यम नर्क लै ढकेलैं कहैं साह नहीं है।
मारैं सहो रोवो ज़रा बल बांह नहीं है।
जहां घोर अंधेरा है धूप छांह नही है।१०।
आंखैं निकार लें उन्हैं कुछ डाह नही है।
क्यों की गरभ में कवल अब तक ख्वाह नहीं है।१२।