४८९ ॥ श्री राम रतन जी कसौधन बनिया ॥
पद:-
हरि सुमिरन में तन मन कौरा।
सतगुरु करि जप की विधि जानो जियति मिटा भव लौरा।
साल दुशाला छोड़ि के भाई ओढ़ेन कमरी टाट भंगौरा।
अच्छे अच्छे भोजन त्यागेन पायन कैथा बेल औ औंरा।
कबहूँ मोथी चना चवायन कबहूँ मकई साँवा के चौरा।५।
कबहूँ भगवा कटि में बांधेन कबहूँ कसेन कोपीन कुठौरा।
कबहूँ मांगि मधुकरी खायन लपसी कढ़ी औ भात पकौरा।
कबहूँ दाल साग जो मिलिगा कबहूँ रोटी बरा मुंगौरा।
सुमिरन करो जियति सब तै हो पहुँचै अपने ठौरा।
नाहीं तो फिर अन्त नर्क में यमन के चलैं हथौरा।
सब तन कूटैं नेकि न मानैं बांधि के चाभ पिछौरा।
कल्पन भोग भोगाय कै छोड़ैं फिर हो जल में सौरा।१२।
दोहा:-
मुरदा मांस खखार जल मिलै खान हित जान।
या से हरि सुमिरन करो ह्वै जावै कल्यान॥