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४९० ॥ श्री ठाकुर शुभ करन सिहं जी ॥

दोहाः कुक्कुट तीतरि बुलबुलैं बटई मेढ़ा स्वान।

आपस में लड़ि जात हैं बाजत ये अज्ञान।१।

पढ़ि सुनि गुनि जे जन लड़ै उन्हैं कौन है ज्ञान।

जियतै बीमा नर्क का लीन उठाय बिकान।२।


शेर:-

दीनता औ शान्ति से सुमिरन करै सो ऊँच है।

धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख रूप जग से कूँच है॥