४९४ ॥ श्री कमबख्त शाह जी ॥
पद:-
बेद ओ शास्त्र पौराण पढ़ि सुनि कोई नाम की तान को
जान सकता नहीं।
ध्यान परकाश लय रूप का छवि छटा हर समय सामने
अपने लखता नहीं।
देव मुनि संघ बैठक औ हरि कीर्तन साज अनहद की धुनि
तान सुनता नहीं।
दीनता शान्ति औ सत्य विश्वास बिन प्रेम आ कर के
तन मन में भरता नहीं।
इसमें सतगुरु की भाई ज़रूरत बड़ी भेद पाये बिना
मार्ग खुलता नहीं।
कहते कमबख्त जियतै में जो तय करै त्यागि तन फेरि
जग में विचरता नहीं।६।
दोहा:-
सीना ढीला देय करि गर्दन देय झुकाय।
आँखै दोनों बन्द करि पल्थी लेय लगाय॥
गोफ़ा दोनों कर लगा निज आगे रखि लेय।
उन्मुनी मुद्रा है यही सूरति शब्द पै देय॥
कहैं कमबख्त शाह मोहिं सतगुरु दीन्हों ज्ञान।
महा सुखी ह्वै जाय सो मानो वचन प्रमान॥
मेरु दण्ड के झुके बिन मिलत न ठीक ठिकान।
कहैं कमवख्त जाप विधि सतगुरु से ले जान॥
राज योग या को कहत योगन का शिरताज।
कहैं कमबख्त जान कर सारो अपना काज।५।
वार्तिक:-
सुखी उसको कहते हैं जो नाम की धुनि ध्यान प्रकाश औ समाधि को जान ले। महा सुखी उसको कहते हैं जिसके सामने रूप हर समय विराजता है। नाम की तान सुन रहा है, ध्यान प्रकाश औ समाधि करतल है।