४९३ ॥ श्री गनी मियां जी ॥
पद:-
बजा के मुरली विपिन में मोहन नचाया वृक्षों को सत्य मानो।
जिधर को झुकते थे श्याम सुन्दर उधर को झुकते थे वृक्ष मानो।
जहां पै कूदैं मुरली मनोहर वहां पै कूदैं सब वृक्ष मानो।
जहां पै दौरैं घनश्याम प्रिय बर वहां पै दौरैं सब वृक्ष मानो।
मर्याद जग की मिटाया उस दिन दिखाया सुर मुनि को सत्य मानो।
फूलों की वर्षा जयकार की धुनि बजाया सुर मुनि ने साज मानो।५।
भरा था मुरली में नाम प्रिय का कहवाया वृक्षों से सत्य मानो।
करौ तो मुरशिद मिलै ये कूचा लखौ यह लीला तब सत्य मानो।
धुनि ध्यान तै हो परकाश लय हो जियति अभय हो यह सत्य मानो।
अनहद सुनो घट सुर मुनि मिलैं चट सकौ न फिर हट यह सत्य मानो।
प्रिय श्याम झांकी अलवेली वांकी सन्मुख में टांकी यह सत्य मानो।
यहीं सम्हर लो जियति में वर लो तन त्यागि घर लो यह सत्य मानो।११।
दोहा:-
शान्ति दीनता के बिना गनी कहैं दुख होय।
मन स्थिर नहिं हो सकै कैसे छूटै दोय॥