५०० ॥ श्री फट फट शाह जी ॥
जारी........
मुरशिद करै लखै सो लीला नाम पै सूरति लावैं
ध्यान प्रकाश समाधि होवै रूप सामने छावै।
अनहद नाद की आनन्द लूटैं सुर मुनि संघ बतलावैं।
नागिन जगै चक्र षट घूमैं सातों कमल खिलावैं।
इड़ा पिंगला सुखमन होवै विहंग मार्ग ते जावै।
चौदह तबक लखै घट भीतर अमृत छकि हर्षावै।४५।
जियतै मुक्ति भक्ति सो जानै तन तजि निजपुर धावै।
फट फट शाह कहैं तब प्रानी भव बन्धन नहिं आवै।४७।
पद:-
सूरति तुम्हारी मोहन तन मन लुभाने वाली।
मुरशिद करै सो जानै सब दुख छुड़ाने वाली।
धुनि ध्यान नूर लय हो सुधि बुधि भुलाने वाली।
मुरली की तान मधुरी सन्मुख सुनाने वाली।
अभिमान होय नेकौं फौरन उड़ाने वाली।५।
दै शान्ति दीनता को भक्तन झुकाने वाली।
दाया क कोष हंसि हंसि दीनन लुटाने वाली।
सुमिरन में जवन कच्चे उनसे लुकाने वाली।
पढ़ि सुनि जे मानते नहीं उनको रुलाने वाली।
बसुयाम जे लगे हैं पलना झुलाने वाली।१०।
उन्ही के संघ डोलैं कर गहि उठाने वाली।
भव का समुन्द्र उन हित पल में सुखाने वाली।
फट फट कहैं गरभ रिन आपै चुकाने वाली।
नाहीं तो कवन उबरै सबको सुलाने वाली।१४।
पद:-
सखी कहैं छोड़ो हरि लरिकइयां।
बारह वर्ष की वयस भई है अब लाज न आवत दैया।
दूध दही माखन नित छीनत चलत बकैयां बकैयां।
वृज भर के लड़िकन को फोरि कै लियो बनाय संघैया।
हम सब भागि कहां को जावैं चलत न कछु चतुरैया।५।
सारी नोचि घांघरा फारत नेको नहीं मनैया।
काहे दुःख देत हौ प्यारे नौ लख तुम्हरे गैया।
प्रेम के वैन सखिन के सुनि कै प्रभु अन्तर ह्वै जैया।
मुरशिद करो लखो नित लीला दर्शैं कुंवर कन्हैया।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि अनहद सुनौ बधैया।१०।
सुर मुनि आवैं हरि गुण गावैं हंसि हंसि हिये लगैया।
फट फट शाह कहैं तन तजि के चलो अचलपुर भैया।१२।
पद:-
अजिर निज खेलैं दुनों भैय्या।
कटि करधनियां पग पैजनियां बाजैं आनन्द छैय्या।
छोरे केश वसन नहिं तन में दौरैं हंसि सुखदैय्या।
लड़ैं गिरैं उठि बैनै बोलैं प्रेम की करि लपटय्या।
चोटिया हरि बलराम की पकरैं बलि चट पट ह्वै जैय्या।५।
ऊपर हरि सवार ह्वै जावैं कहैं चलौ घोड़रैय्या।
उठि बलराम चलैं हरि बोलैं दौरौ करो कुदय्या।
कहैं बलिराम चुटय्या छोड़ौ तब चलि हैं हम धैय्या।
तब हरि छोड़ि चुटय्या देवैं बोलै बलि मुसकैय्या।
लागि लोटासि मेरे अब मानो उतरो चट पट भैय्या।१०।
तब हरि कहैं बकावत हो तुम जानेन हम चतुरैय्या।
सुर मुनि नभ ते जय जय बोलैं सुमनन की झरि लैय्या।
मातु पिता लखि लखि हरखावैं मुख से बोल न पैय्या।
भांति भांति के खेल दिखावैं बरनन शेष लजैय्या।
मुरशिद करै लखै सो लीला छूटै द्वैत बलैय्या।१५।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय हो शुभ अशुभ जलैय्या।
जारी........