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५०३ ॥ श्री माई गँगारौताईन जी ॥


पद:-

चुकता हिसाब कर दो तव तो हो कौल मरदां।

पट्टा लिखा गर्भ में अब करते हरि से परदा।

पढ़ि सुनि के क्या गुना है तुम से भले हैं बरदा।

तन से कपट न छूटा खाते हो जग में गरदा।

तन छूटने की देरी जम खांय जैसे जरदा।

गांगा कहैं अब चेतो सतगुरु बिना हो छरदा।६।


पद:-

निर्भय निर्वैर रहै जग में सो श्री सतगुरु का है चेला।१।

नाहीं तो भाई है मुशकिल क्यों पास में दाम न है धेला।२।

या से चित चेत कमा लीजै यह चारि दिना का है मेला।३।

गांगा कहैं तन मन एक करै वाके हित यह जिमि है खेला।४।


पद:-

वाउं दुख जग में उन्हैं जिनका न हरि में चाव है।१।

सतगुरु बिना कटता नहीं यह अगम भव का ताव है।२।

नाम वल्ली को गहो तन खूब तुम्हरी नाव है।३।

गांगा कहैं नर तन मिला मत चूकिये क्या दांव है।४।


पद:-

बटो हरि नाम की रसरी।१।

सतगुरु करि सब भेद जानिये होय न मोटी पतरी।२।

लय परकाश ध्यान धुनि होवै बैठै रूप से पटरी।३।

गांगा कहैं अन्त तन छोड़ि कै अचल धाम चल बसरी।४।