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५०४ ॥ श्री झट पट शाह जी ॥


पद:-

परमात्मा का नाम जानै पाप तब वाके कटैं।

सतगुरु करै मारग मिलै तन मन लगा करके डटै।

विघ्न जो कुछ होंय सहले पग न पीछे को हटै।

सो रूप ध्यान प्रकाश लय धुनि पाय भक्तन में छटै।

बाटैं गरीबों को यह धन नित जाय बढ़ता नहि घटै।

झट पट कहैं तन छोड़ि कै निज धाम में जा कर अटै।६।


पद:-

अजब हरि रूप रंग है भाई।

सतगुरु करौ भजौ निशि वासर तन मन प्रेम लगाई।

लय परकाश ध्यान धुनि होवै सन्मुख जावैं छाई।

कौ वरनै अद्भुद है झांकी शारद शेष चुपाई।

दीन दयाल दया के सागर भक्तन के सुख दाई।

झट पट शाह कहैं जियतै में जानै सो मरि पाई।६।