५०२ ॥ श्री चङ्गी माई जी ॥
पद:-
रसनियां है बड़ी दुख दाई।
नीक नीक भोजन यह चाहत छोड़त नहिं लबराई।
या के बिन रोके कोइ जग में सुख कबहूँ नहिं पाई।
कथा कीरतन सुमिरन में यह चलत नहीं हरजाई।
झूठ मसखरी लोभ की बातन में यह चपल लुगाई।५।
पांचौ चोरन को पालन करि दीन्हिस बली बनाई।
मन संग पांचों को लै करके करता पाप कमाई।
या से जीव निकसि नहिं पावत चलत न कछु चतुराई।
सतगुरु करो मानिहै तब यह जो देहौ सोखाई।
तन मन ते तब भजन करी नित नाम निशान धुमाई।१०।
परा मध्यमा पैशन्ती लै ब्रह्म नाड़ि ढिग धाई।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय दर्शैं प्रिय यदुराई।
अनहद सुनो देव मुनि आवैं प्रेम करैं लिपटाई।
नागिन जगै चक्र सब बेधैं जावैं कमल फुलाई।
सुखमन स्वांस बिहंग मारग ह्वै जाय कै घर लखि पाई।
तन तजि कै साकेत चलो फिर कहती चंगी माई।१६।
दोहा:-
कारन की गठरी बनी रसना याको नाम।
सतगुरु बिन वश होय नहिं करती अपना काम।१।
चंगी कह चंगा वही या को ले जो खींच।
निर्भय औ निर्वैर हो नाघि जाय भव कीच।२।