५०९ ॥ श्री कङ्गाल शाह जी अफ़रीदी ॥
पद:-
मन से वचन से कर्म से विश्वास करि हरि नाम पर।
मुरशिद से मारग जान कर तू लागि जा निज काम पर।
धुनि ध्यान लय परकाश हो सुर मुनि मिलैं वसुयाम पर।
अनहद की मधुरी तान सुन जो हो रही दर आम पर।
प्रिय श्याम की अद्भुद छटा सन्मुख लखौ हर ठाम पर।
अन्त में तन छोड़ि चल कंगाल कह निज धाम पर।६।