५३२ ॥ श्री प्रेम निधि जी ॥
पद:-
तरुणाई में अबला पति बिना बिरह अनल जरि जावै।
वैसे सतगुरु करि जप विधि जानो मन को जो तावै।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोंवन खुलि जावै।
सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद अमी पाय हर्षावै।
राम सिया की झांकी सनमुख आय छटा छवि छावै।
अन्त त्यागि तन अचल धाम लै फिर जग में नहिं आवै।६।