५३६ ॥ श्री हबीबा जी रण्डी ॥ (२)
सतगुरु करि सुख लेहु मजे से।
सूरति शब्द की जाप है अजपा तन मन प्रेम में देहु मजे से।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय पावो पासे भेव मजे से।
अमृत चखौ देव मुनि दर्शैं अनहद घट सुनि लेहु मजे से।
सन्मुख हर दम सिय प्रभु निरखौ भागैं असुर औ मेव मजे से।
अन्त छोड़ि तन कहैं हबीबा निज पुर बैठक लेहु मजे से।६।