५३८ ॥ श्री मधु मंगल जी ॥ (२)
श्याम श्यामा सखा सखी खेलते।
कर से कर पकरैं चट बैठैं हंसि सब संघै लेटते।
उठि के फिर कूदैं ऊपर को निज निज जुट को भेटते।
श्याम अनन्त रूप बनि सब को बांधत अपनी फेंट ते।
यमुना रज को लाय श्याम तर करैं सुगन्धित तेल ते।५।
सब को बशी भूत करि पल में मुख में ता को ठेलते।
राधे हंस लखि बैठि जाँय चट मुख मूँदैं निज चैलते।
सुर मुनि चढ़े विमानन निरखैं प्रेम में गद्गद भैल ते।
सतगुरु करे भजन विधि जानै छूटै भव के जेल ते।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि पाय जियत घर पेलते।१०।
सुर मुनि मिलैं गहै दूनों कर प्रेम के रेला रेल ते।
मधु मंगल कहैं जे न भजैं हरि ते चौरासी झेलते।१२।