५३८ ॥ श्री मधु मंगल जी ॥
पद:-
श्याम श्यामा लखौ खड़े सामने।
सतगुरु करो भजन विधि जानो लूटा तुमको काम ने।
अगणित पापी निज पुर राजत भेजि दीन हरि नाम ने।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय जाना है नर वाम ने।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद सुर मुनि के कर थामने।५।
घट ही में सब लोक तीर्थ क्या रचना की सुखधाम ने।
मधु मंगल कहैं गर्भ में वादा सुमिरन का कियो चाम ने।
सो तो करत नहीं हा पापी वयस लियो वसु याम ने।८।