५४० ॥ श्री धोका शाह जी ॥ (४)
समझ मन जल औ काठ की प्रीति।
अपना सींचा जानि न बोरत क्या है बड़ेन की रीति।
तू तो जीव क नायब बनि कै करत सदा अनरीति।
चिन्ता बिषय की छोड़त नाहीं कौन करै परतीत।
सतगुरु बिन तू सुधरै नाहीं ऐसा भया पलीत।५।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि जानि लेहु तोहि जीति।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद सुर मुनि सिखवैं नीति।
सन्मुख राम सिया छवि छावैं गिरै द्वैत की भीति।८।