५४० ॥ श्री धोका शाह जी ॥ (५)
प्रेम प्रीति बिन होय नहिं नीति सदा की रीति।
जीति मनै अनरीति तजि बनौ वज्र की भीति।१।
धोका कह हरि भजन बिन ढोवत फिरत पलीति।
सतगुरु करि निज मार्ग गहु तब होवै परतीति।२।
राम नाम में शक्ति है अकह अलेख अपार।
धोका कह सतगुरु वचन मान जियो निश बार।३।
ध्यान प्रकाश समाधि हो नाम खुलै रंकार।
हर दम सन्मुख राम सिया निरखौ अजब सिंगार।४।