५४४ ॥ श्री कोतवाल शाह जी ॥
पद:-
जिस नाम से हो प्रेम जिसका उस से वह भव पार हो।
सतगुरु से जप बिधि जानि लेवै जियति ही उद्धार हो।
धुनि ध्यान लय परकाश पावै रूप का दीदार हो।
सुर मुनि मिलैं अनहद सुनै अमृत पियै मतवार हो।
निर्वैर निर्भय जब चहै चलि जाय नित दरबार हो।५।
एक रस हर दम रहै नेकौ न फिर फलकार हो।
त्यागि तन चढ़ि जाय निजपुर चलैं तहं अति प्यार हो।
कोतवाल कह यह तन भजन बिन मान लो बेकार हो।८।