५४५ ॥ श्री प्रेमदास जी ॥
पद:-
निरखौ श्याम संग में राधे।
सतगुरु करौ लखौ यह लीला हौ तुम द्वैत में बांधे।
सखा सखी सब खेल करैं संग कर धरि धरि दोउ कांधे।
सुर मुनि आवैं हिये लगावैं जे हरि नाम को साधे।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि होवै प्रभु आराधे।
प्रेम दास कहैं अन्त लेहु घर छूटै सकल उपाधे।६।