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५५३ ॥ श्री हनुमान देई माई रैदासिन ॥

(२)

पद:-

हरि से हरि का नाम बड़ा है।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानो परदा हटै पड़ा है।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख श्याम खड़ा है।

मन्द हंसन खुब चितवन प्यारी तन मन माहि गडा है।

अमृत पिओ गगन ते टपकै चुकै न ऐस घड़ा है।५।

 

अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं कैसा योग जड़ा है।

जो मम बचन पै तन मन देवै सो साकेत अड़ा है।

नाहीं तो तन त्यागि नर्क में कल्पन जाय सड़ा है।८।