५५४ ॥ श्री कुकरूँ कूँ शाह जी ॥ (२)
पद:-
हरि नाम धन निज धाम को बसुयाम मनीआर्डर करो।
सतगुरु से सीखो जब कमाना तब तो खुद पैदा करो।
तन मन औ प्रेम लगाय के जब शब्द पै सूरति धरो।
धुनि ध्यान लय परकाश हो सुर मुनि मिलैं चरनन परो।
अनहद सुनो अमृत पिओ छूटै भरम सुख में भरो।५।
राम सीता की छटा सन्मुख रहै जियतै तरो।
यह पद मिलै तब भाइयों दुख पड़ै सह लो मति टरौ।
निर्वैर निर्भय हर समय यम काल मृत्यु से नहिं डरो।
युग युग रहै साका बनी तन दो बदल तुम नहिं मरो।
चेतो कहा मानो नहीं तो भव की अग्नी में जरो।१०।
दोहा:-
खोंटा खरा बनि जात है जानि राम का नाम।
भजन में जो अलसात है ताको सरै न काम।१।
पद:-
हरि नाम जप करतल करो धुनि ध्यान लय परकाश जी।
सुर मुनि मिलैं अमृत पिऔ जो झरत बारह मास जी।
अनहद सुनो घट में बजै सिय राम सन्मुख खास जी।
नागिन जगै चक्कर चलैं कमलन क होय बिकास जी।
निर्वैर औ निर्भय रहौ हों कर्म दोनों नाश जी।
अन्त तन तजि लेहु निजपुर त्यागि जग की आस जी।६।
दोहा:-
कुकरूँ कूँ कह मम बचन मानै नहिं जो भाय।१।
सो कैसे पावै रतन जग में चक्कर खाय।२।