५६५ ॥ श्री राजा प्रताप रुद्र सिंह जी ॥
पद:-
वृथा है राज का मद जिसने न हरि को जाना।
चक्कर में उसके हर दम करता रहा मनमाना।
होवैगी अन्त ख्वारी जब नर्क हो रवाना।
सतगुरु बिना ए भाई मिलता न निज ठेकाना।
धुनि ध्यान नूर लै औ अनहद कि मधुर ताना।५।
सुर मुनि से हरि की चर्चा अनुपम अमी को पाना।
प्रिय श्याम की छटा छबि सन्मुख में आय छाना।
प्रताप रुद्र कह तब होता न गर्भ आना।८।